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Coronavirus Vaccine लगने के दो साल बाद मौत? वैक्सीन से कोरोना हुआ घातक? क्या है नोबल विजेता के दावों का पूरा सच?

Coronavirus Vaccine लगने के दो साल बाद मौत? वैक्सीन से कोरोना हुआ घातक? क्या है नोबल विजेता के दावों का पूरा सच?



Coronavirus Vaccine लगने के दो साल बाद मौत? वैक्सीन से कोरोना हुआ घातक? क्या है नोबल विजेता के दावों का पूरा सच?






Vaccine Effect on Coronavirus: वायरस इम्यून रिस्पॉन्स से बचने की कोशिश न सिर्फ उन लोगों में करता है जिन्हें वैक्सीन लगी हो, बल्कि उनमें भी जो एक बार इन्फेक्ट होकर ठीक चुके हों और इम्यूनिटी विकसित कर ली हो, और उन लोगों में भी जिन्हें पहली बार इन्फेक्शन हुआ हो।

पहले दुनियाभर में कोरोना वायरस की महामारी का हमला हुआ, फिर इसके वेरियंट्स ने कहर बरपाया और अब वैक्सीन को लेकर डर का माहौल बनने लगा है। इस बीच फ्रेंच नोबेल पुरस्कार विजेता लूच मॉन्टेनियर (Luc Montagnier) के दावों से तो तहलका मच गया। रिपोर्ट्स में कहा जाने लगा कि लूच के मुताबिक वैक्सीन लगवाने वाले लोग अगले दो साल से ज्यादा जिंदा नहीं रहेंगे। लूच ने यह वेरियंट्स के लिए वैक्सीन के कारण हुए म्यूटेशन को जिम्मेदार ठहराया है। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? क्या वाकई वैक्सीन से मौत का खतरा है? क्या वैक्सीन वायरस को मजबूत बना रही है? क्या हमें वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए? इन सब सवालों के जवाब ढूंढने के लिए नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के लिए शताक्षी अस्थाना ने खास बातचीत की अमेरिकन फिजियॉलजिकल सोसायटी के सदस्य और वेन स्टेट यूनिवर्सिटी के डॉ. जोसेफ ए रोश और सऊदी अरब की किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट एंजायमॉलजिस्ट डॉ. राम करण शर्मा से। उन्होंने बताया वैक्सीन पर दावों और अफवाहों का पूरा सच-

1. कैसे होता है म्यूटेशन? वैक्सीन का क्या असर?

डॉ. जोसेफ ने बताया कि शरीर को इन्फेक्ट करने के बाद वायरस इम्यूनिटी से बचने की कोशिश करता है। वायरस यह कोशिश न सिर्फ उन लोगों में करता है जिन्हें वैक्सीन लगी हो, बल्कि उनमें भी जो एक बार इन्फेक्ट होकर ठीक चुके हों और इम्यूनिटी विकसित कर ली हो, और उन लोगों में भी जिन्हें पहली बार इन्फेक्शन हुआ हो। इसलिए यह भी जरूरी है कि जिन लोगों को वैक्सीन लग चुकी हो, उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनना और सफाई रखना जारी रखना चाहिए ताकि फिर इन्फेक्शन न हो।

उन्होंने बताया कि सिंगल-स्ट्रैंड वाले पॉजिटिव सेंस RNA वायरस (जैसे SARS-CoV-2) में म्यूटेशन आम है। म्यूटेशन की संभावना इस बात से बढ़ जाती है कि कितने ज्यादा लोगों में इन्फेक्शन हुआ, न कि इस बात पर कि कितने वैक्सिनेटेड लोगों में इन्फेक्शन हुआ है। यह भी माना जाता है कि किसी की इम्यूनिटी के कारण वायरस विकसित हो सकता है। जितने कम लोगों को इन्फेक्शन होगा, वायरस को म्यूटेशन के जरिए मॉडिफिकेशन का उतना कम चांस मिलेगा।

ऐसे में नए इन्फेक्शन को वैक्सिनेशन और सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और सफाई रखने जैसे तरीकों से रोकना होगा। इससे वायरस कमजोर होगा और कम्यूनिटी स्प्रेड समय के साथ खत्म हो जाएगा। वैक्सीन को छोड़कर वायरस को रोकने का दूसरा तरीका फिजिकल प्रतिबंध हैं, जिनका पालन करना जनता के लिए चुनौती होगी और यह लंबे समय के लिए प्रैक्टिकल नहीं है।


धीमी रफ्तार से हो रहा म्यूटेशन

डॉ. जोसेफ का कहना है कि SARS-CoV-2 के खिलाफ वैक्सीन को असरदार पाया गया है और ये इन्फेक्शन और ट्रांसमिशन के खतरे को कम करती हैं। यह भी पाया गया है कि वैक्सिनेशन न होने, या कम वैक्सिनेशन होने पर वायरस इन्फेक्शन का रिस्क बढ़ता भी है और म्यूटेशन का भी।

डॉ. राम करण ने कहा कि सभी वायरस समय के साथ स्वाभाविक रूप से म्यूटेट होते हैं और Sars-CoV-2 कोई अपवाद नहीं है। इनमें से कई म्यूटेशन मामूली हैं और कुछ वायरस को कम संक्रामक भी बना सकते हैं। SARS-CoV-2 के मामले में देखा गया है कि यह दूसरे RNA वायरस की तुलना में चार गुना कम रफ्तार से म्यूटेट हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि वैक्सीन वेरियंट्स खिलाफ भी असरदार प्रभावी हैं। धीमी रफ्तार से म्यूटेशन रेट से उम्मीद है कि वैक्सीन उम्मीदवारों को लंबे वक्त तक सुरक्षा की क्षमता देने की और एक कम बाधा होगी।


2. क्या दो साल में मर जाएंगे वैक्सिनेटेड लोग?

वायरॉलजीस्ट लूच ने ऐसा कहा है कि दो साल में वैक्सिनेटेड लोग मर जाएंगे, इस बात के कोई सबूत नहीं हैं। कहीं भी उनकी ओर से ऐसा बयान दिए जाने की पुष्टि नहीं हुई है।

अगर उन्होंने ऐसा कहा भी हो, तो डॉ. जोसेफ साफ करते हैं कि यह बेहद गलत है। बायोमेडिकल रिसर्च के तौर पर देखें, तो इस तरह के पूर्वानुमान की कोई वजह नहीं है। उन्होंने यह भी कहा है कि जब दुनियाभर में लोगों और समाज की सेहत पर कोविड-19 का कहर है, तब इस तरह अपने विचार के आधार पर इस तरह बयान अनैतिक है। डॉ. जोसेफ ने बताया है कि ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है कि कोई भी सुरक्षित और असरदार वैक्सीन लेने वाले लोगों की मौत दो साल में वैक्सीन के कारण हो जाएगी।

डॉ. राम करण ने डॉ. जोसेफ से सहमति जताते हुआ कहा है कि लूच ने जो चिंताएं जाहिर की हैं, उनका समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। डॉ. राम करण ने कहा कि इससे वैक्सीन लेने वालों में काफी बेचैनी है। यह उन लोगों में भी टीका हिचकिचाहट को बढ़ावा दे रहा है जिनका अभी तक टीकाकरण नहीं हुआ है। संक्रमण और मौत की गंभीर लहर का सामना कर रहे भारत में लोगों को इस खबर से विचलित नहीं होना चाहिए। जैसे ही ये उपलब्ध हों, उन्हें COVID-19 के टीके लेने चाहिए।


3.Coronavirus Vaccine किसी वायरल बीमारी के खिलाफ पहली वैक्सीन नहीं है। क्या पहले किसी वैक्सीन की वजह से वायरस के मजबूत होने के सबूत कभी मिले हैं?

डॉ. जोसेफ कहते हैं, 'नहीं, ऐसा कोई सबूत नहीं है। क्लिनिकल ट्रायल के दौरान सुरक्षा जैसे मुद्दे पर वैक्सीन स्टडीज को रोक दिय जाता है। इसीलिए ट्रायल किए जाते हैं। किसी भी सुरक्षित असरदार वैक्सीन की वजह से वायरस या किसी और कीटाणु के मजबूत होने और महामारी बढ़ाने के सबूत नहीं मिले हैं।' उन्होंने साफ किया है कि वैक्सीन के कारण म्यूटेशन की सिर्फ आशंका ही है लेकिन ऐंटीबैक्टीरियल और ऐंटीवायरल दवाओं के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल के कारण म्यूटेशन का खतरा होता है।

उन्होंने यह भी बताया है कि पोलियो के केस में वैक्सीन की अहमियत पता चलती है। ऐसे समुदायों में जहां वैक्सिनेशन कम हो या न हुआ हो, वहां वैक्सीन लगने के बाद वायरस फैलता पाया गया है। WHO के मुताबिक 2-3 राउंड फुल वैक्सिनेशन के बाद इसे पूरी तरह से रोके जाने में सफलता हासिल कर ली गई। बड़े स्तर पर वैक्सिनेशन से वायरस खत्म करने में पोलियो पर जीत एक मिसाल है।


4. वैक्सिनेशन के बाद घातक हुआ वायरस?

इसे लेकर यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में इन्फेक्शियस डिजीजेज के चीफ डॉ. फहीम यूनुस ने भी इस दावे को खारिज किया है कि वैक्सिनेशन की वजह से कोविड बेकाबू हो गया है। उन्होंने ट्विटर पर बताया है, अमेरिका में वैक्सिनेशन के बाद 70 हजार लोगों की मौत हुई है जबकि वैक्सिनेशन से तीन महीने पहले ढाई लाख के आसपास लोगों की कोरोना से मौत हुई है। ऐसा ही वाकया अन्य देशों में भी देखने को मिला है।' उन्होंने यह भी बताया है कि वैक्सीन से कोरोना वेरिएंट वहीं बन रहे हैं क्योंकि ब्रिटेन, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, भारत से जुड़े सभी बड़े वायरस वेरिएंट व्यापक वैक्सिनेशन के पहले उभरे हैं, वैक्सिनेशन के बाद नहीं।



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